...

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“होठों पे, खून रहने दो"
वो दरमियां नहीं मेरे,
ये सुकुन रहने दो,,
पौंछो नहीं, चोटों को,
होठों पे, खून रहने दो...

मेरी हालत-ए-बेहाल है,
सहूलियत दिखाओ ना, मुझे अभी,,
गिर गया हूं, नजर से,
फर्श पे भी, पड़े रहने दो,,

मैं झूंझ रहा हूं, इस कदर,
दर्द भी खिलाफ है,,
रुक सके, तो रोक लो,
नहीं तो, नब्ज को, कटे रहने दो,,

ये क्या है? ये क्या है?
मरहम है!
हटाओ इसे,
जख्मों को, फटे रहने दो...

आशिक हूं,
या.. मसखरा हूं कोई,,
खुदा को भी, मुझ पे,
हस लेने दो...

मुझ कांटे को, मिलाओ नही,
फूलों में अभी,,
मुझे नफरत-ए-महक है,
बस हवश रहने दो...✍️
© #Kapilsaini