ना जाने क्यों...
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ना जाने क्यों कभी-कभी,
एहसास लफ़्ज़ों के मोहताज हो जाते हैं,
दर्द की गहराई में,
हम बस खामोश रह जाते हैं।
चाहत का वो एक पल,
जो आंखों में समा जाता है,
आज उस पल को सोचकर,
दिल फिर से तन्हा हो जाता है।
रिश्तों के धागे,
जो कभी मजबूत हुआ करते थे,
अब वो धागे टूटकर,
बस यादों में खो जाते हैं।
जिन लम्हों को सहेजा था,
सपनों के दरम्यान,
वो लम्हें अब जलते हैं,
जैसे राख हो अरमान।
आंखों में सजे सपने,
अब...
ना जाने क्यों कभी-कभी,
एहसास लफ़्ज़ों के मोहताज हो जाते हैं,
दर्द की गहराई में,
हम बस खामोश रह जाते हैं।
चाहत का वो एक पल,
जो आंखों में समा जाता है,
आज उस पल को सोचकर,
दिल फिर से तन्हा हो जाता है।
रिश्तों के धागे,
जो कभी मजबूत हुआ करते थे,
अब वो धागे टूटकर,
बस यादों में खो जाते हैं।
जिन लम्हों को सहेजा था,
सपनों के दरम्यान,
वो लम्हें अब जलते हैं,
जैसे राख हो अरमान।
आंखों में सजे सपने,
अब...