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नारी दौर है बुरा,,,,
राधा राणा की कलम से....
नारी ! दौर है बुरा,विवेक नहीं छोड़ना।
आफताब के जेसो से, दिल नहीं जोड़ना।
विवाह पूर्व वर के,उचित नहीं संग रहना,
आधुनिक सभ्यता की,दौड़ नहीं दौड़ना।
प्रेम हो माता का, व पिता का तुम मान हो,
इनका कभी भी, विश्वास नहीं तोड़ना।
प्रेम या कोई भी रिश्ता,मान नहीं दे अगर,
ऐसे रिश्तो की ओर, दिल नहीं मोड़ना।
यदि कोई छेड़े तुझे,आते जाते रस्ते में ,
ऐसे पापियों की गर्दन तू मरोड़ ना।
छल के मुख पे ,मुखोटा है मोहब्बत का,
लव जिहाद जैसे,मसलों का भंडाफोड़ ना।
नारी! दौर है बुरा, विवेक नहीं छोड़ना,
आफताब के जैसों से,दिल नहीं जोड़ना,
नारी ! दौर है बुरा,विवेक नहीं छोड़ना।
आफताब के जेसो से, दिल नहीं जोड़ना।
विवाह पूर्व वर के,उचित नहीं संग रहना,
आधुनिक सभ्यता की,दौड़ नहीं दौड़ना।
प्रेम हो माता का, व पिता का तुम मान हो,
इनका कभी भी, विश्वास नहीं तोड़ना।
प्रेम या कोई भी रिश्ता,मान नहीं दे अगर,
ऐसे रिश्तो की ओर, दिल नहीं मोड़ना।
यदि कोई छेड़े तुझे,आते जाते रस्ते में ,
ऐसे पापियों की गर्दन तू मरोड़ ना।
छल के मुख पे ,मुखोटा है मोहब्बत का,
लव जिहाद जैसे,मसलों का भंडाफोड़ ना।
नारी! दौर है बुरा, विवेक नहीं छोड़ना,
आफताब के जैसों से,दिल नहीं जोड़ना,
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