भेष
कर तसव्वुर ख्वाब का ,हो रहा बेसब्र कोना
खो रहा निज सुध बेचारा, भटके होकर गुम बेचारा
रेत सा फिसलत है यह पल,ओढ़ता हर क्षण नव पटु
क्रंदन ,हंसी थे भाव कैसे ,खो चुका हर भाव अब जग
भीड़ मा गुमनाम सा सच , ढूंढता निज सदन तन्हा
फंस रही अचरज मे...
खो रहा निज सुध बेचारा, भटके होकर गुम बेचारा
रेत सा फिसलत है यह पल,ओढ़ता हर क्षण नव पटु
क्रंदन ,हंसी थे भाव कैसे ,खो चुका हर भाव अब जग
भीड़ मा गुमनाम सा सच , ढूंढता निज सदन तन्हा
फंस रही अचरज मे...