...

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मैं उलझा हूं
मैं
उलझा हूं
जिंदगी की राह में
ठोकरों की पनाह में।

प्यासा हूं
जीवन के मौन को
मां के स्पर्श को ।

व्यथा है
मेरे जवाबो की
मेरे खुद के जो मर रहे
उन सपनों की।

लोग लड़ रहे
धर्म को, जात को
ऊंच-नीच अभिमान को।

मैं
जूझ रहा
चैन से जीने को
खुद को पाने को।

समय नहीं
दुख-दर्द जताने को
दूसरो को समझाने को।

दिल में बस एक ख्वाब,
जीवन को नया आयाम देने का,
हर दर्द, हर ठोकर को
मुस्कान में बदलने का।

© rajib1603