...

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बुलंदियों से भरे हौसलें…!!!!
जब राह के काटें भी पग को छलनी कर जाएं…
जब आसमां में ऊँचा उड़कर फ़िर नीचे गिर जाएं।।
जब आशाओं की सारी किरणें कहीं विलुप्त हो जाएं…
जब सफ़लता का मूल-मंत्र भी कहीं गुप्त हो जाएं।।
जब बाधाएं जीवन-पथ में आ जाएं…
जब प्रलय की घनघोर घटाएं छा जाएं।।
जब हम हताश हो जाएं…
जीवन से निराश हो जाएं।
जब उम्मीदें टूट कर बिखर जाएं…
जब ख़ुद को हारा पाकर-
सोचें, हम कहाँ जाएं और किधर जाएं।।
तब-
योद्धा की भांति, फ़िर खड़े होकर लड़ना होगा…
इस जीवन में कुछ करना होगा।।
माना की राहों में कांटे हैं और चारों तरफ़ नाकामी है…
माना की आशाएं सारी बिखर गई और लक्ष्य भी दुर्गामी है।।
माना की लक्ष्य टूट गया…
माना की सफ़र छूट गया।।
किन्तु फ़िर भी-
दोबारा हौसलों की उड़ान भरकर…
अंतिम श्वास तक लड़कर।।
असफलताओं को दिखाना है…
न उसका अब कहीं ठिकाना है।।
सफ़लता की किरण जगमगाएं…
हौंसलों से बुलंदियों को हम छू जाएं।।
जीत हो और जीत का ही मात्र एक विकल्प हो…
ऐसा हमारा संकल्प हो।।
न चुनौतियों से हम भयभीत हों…
और हार के आगे हमारी जीत हो।।
जब प्रयास हमारा कुछ ऐसा निश्चल होगा…
तब भविष्य ज़रूर उज्ज्वल होगा।।
और तभी तो ज़िंदगी की कसौटी पर हमारा ये जन्म अंततः सफ़ल होगा…!!!!
-ज्योति खारी