भरम
आँख बंद करके जो सपने बुने ,
हकीकत में सब बिखर गए
आईने को असलियत मान बैठे थे
टुटा गुमान तो सब ढह गए
धोके में थे अब तक की मुट्ठी में
बंद है याद हमारी उनके ,
नगर खुला जो हाँथ तो
सब रेत की तरह बह गए
हकीकत में सब बिखर गए
आईने को असलियत मान बैठे थे
टुटा गुमान तो सब ढह गए
धोके में थे अब तक की मुट्ठी में
बंद है याद हमारी उनके ,
नगर खुला जो हाँथ तो
सब रेत की तरह बह गए
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