...

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भरम
आँख बंद करके जो सपने बुने ,
हकीकत में सब बिखर गए
आईने को असलियत मान बैठे थे
टुटा गुमान तो सब ढह गए
धोके में थे अब तक की मुट्ठी में
बंद है याद हमारी उनके ,
नगर खुला जो हाँथ तो
सब रेत की तरह बह गए