...

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अब थक गया हूं मां
मतलबी इस जमाने की भीड़ में,
कई बार खुद को तन्हा पाया है।
जो कभी रोई न थी आंखे मेरी,
इस दुनिया ने मुस्कुराते हुए मेरे लबों को भी रुलाया है।
अब थक गया हूं मां
खुद को आजमाते-आजमाते,
अब मुझको हमेशा के लिए अपनी गोद में सुला ले मां।

जहां से कभी उठ ना पाऊं,
इस दुनिया की शोर कभी सुन न पाऊं।
एकांत में खुद को हमेशा के लिए कैद दू।
इस मतलबी दुनिया की भीड़ से में खुद को पन्नाह कर लू।

अब थक गया हूं मां,
मुझको सारी उमर के लिए
अपनी गोद में सुलाले,
ना कभी उठ पाऊं तुम्हारी गोद से
कुछ ऐसी प्यारी लोरी सुना दे।
बहुत रुलाया है, इस पत्थर दुनिया ने मुझे।
एक बार अपनी प्यारी मुस्कान से मुझको भी हंसा दे।

मां एक बार अपने कोमल हाथों से मेरे माथे को सहला दे।
ये जो मेरी आंखो में समुंदर का दरिया तुम्हे दिख रहा है न उसको अपनी आंचल से सुखा दे।
मां एक बार मुझको सारी उम्र के लिए अपनी गोद में सुलाले।

अब थक गया हूं मैं मां,
खुद को समझाते-समझाते।
अब थक गया हूं मां तन्हाइयों में खुद को अकेला पाकर।


© The Burning🔥soul Niraj