...

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" चमचों की बल्ले बल्ले "
काम की कद्र है कहां,
बराबर कर्मठ और निठल्ले हैं
इस युग में तो केवल, चमचों
की ही बल्ले बल्ले है

गुण बुद्धि हो या ना हो
तुम केवल इतना काम करो
चाटुकार बनो तबीयत से,
ऐश करो, आराम करो

गर हो तुम खुद्दार, समझ लो
मालिक को न भाओगे
चमचागिरी में माहिर हो तो
खूब तरक्की पाओगे

स्वाभिमान को छोड़ो, देखो
फिर कैसे दिन फिरते हैं
बिन मेहनत के ही देखो
कैसे फल तुम को मिलते हैं

कामकाज कुछ खास नहीं,
तुमको बस इतना करना है
मालिक के आदेश पे तुमको
भोकना और कुतरना है

चमचों के प्रकार बहुत हैं
कुछ बड़े, कुछ छोटे हैं
कुछ ने जूठन कम चाटी और
कुछ खा खा कर मोटे हैं

मेहनत कुंजी सफलता की,
हमने तो यह जाना था
अब केबल चमचों की चलती,
वो कोई और ज़माना था








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