...

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सच को दर्पण दिखलाये कौन...
नैनों में छिपे कुछ प्रश्न गौण
अधरों पर अनुत्तरित मौन
मन की भीतर गाँठो पर
पहरेदारी करता कौन?

बाहर कितनी हँसी-ठिठोली
भीतर एक तन्हा पहेली
अधरों पर चस्पा मुस्कान
दुनियादारी जीता कौन?

चेहरों पर चेहरे हैं कितने
राज़ दिलो के गहरे कितने
कौन पराया कौन है अपना
मन को ये समझाए कौन?

स्वार्थ के रिश्ते बस गहरे
अपनेपन के जाल सुनहरे
झूठ की इस मायानगरी में
सच को दर्पण दिखलाए कौन?