...

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विहग तुम्हारी कैसी दशा ?
विहग तुम्हारी कैसी दशा ?

तरुओं की ममता जर गयी
या शाखों ने त्याग दिया
रस्ता या फिर भटक गई,
घर का बोल पता बता ?

हैं निडर दीखते दृग तेरे,
भयभीत लगे क्यूं अंतर से।
काल सरीखा तम खंडित, जब
आएंगी किरणें कन्दर से।।

करुण स्वरों से चीखा था
ढोया था काली...