विहग तुम्हारी कैसी दशा ?
विहग तुम्हारी कैसी दशा ?
तरुओं की ममता जर गयी
या शाखों ने त्याग दिया
रस्ता या फिर भटक गई,
घर का बोल पता बता ?
हैं निडर दीखते दृग तेरे,
भयभीत लगे क्यूं अंतर से।
काल सरीखा तम खंडित, जब
आएंगी किरणें कन्दर से।।
करुण स्वरों से चीखा था
ढोया था काली...
तरुओं की ममता जर गयी
या शाखों ने त्याग दिया
रस्ता या फिर भटक गई,
घर का बोल पता बता ?
हैं निडर दीखते दृग तेरे,
भयभीत लगे क्यूं अंतर से।
काल सरीखा तम खंडित, जब
आएंगी किरणें कन्दर से।।
करुण स्वरों से चीखा था
ढोया था काली...