"मुकाम "
मुकाम तक पहुंचने में वक़्त तो लगता है,
सब्र, धैर्य, इत्मीनान यूँ ही तो नहीं कोई रखता है
बेचैनियों के दौर में दोस्त ख़ुद का ख़ुद ही
बन जाना अच्छा है,
ग़ुरूर स्वाभाविक है,
लाज़मी है इतराना उनका जिनके पास है "बहुत कुछ"
कुछ न होने पर भी मग़र
मुस्कुरा कर मिल पाना ख़ुद से भी, अच्छा है
रात...
सब्र, धैर्य, इत्मीनान यूँ ही तो नहीं कोई रखता है
बेचैनियों के दौर में दोस्त ख़ुद का ख़ुद ही
बन जाना अच्छा है,
ग़ुरूर स्वाभाविक है,
लाज़मी है इतराना उनका जिनके पास है "बहुत कुछ"
कुछ न होने पर भी मग़र
मुस्कुरा कर मिल पाना ख़ुद से भी, अच्छा है
रात...