ज़ख़्म-ए-तमन्ना
हमारे "ज़ख़्म-ए-तमन्ना" पुराने हों गए हैं
किस्से हमारी मोहब्बत के फ़साने हों गए हैं
जब से हिजरत की हैं हमने "शहर-ए-यार" से
उसको ख़्वाबों में आए हुए भी ज़माने हों गए हैं
जहा से तू...
किस्से हमारी मोहब्बत के फ़साने हों गए हैं
जब से हिजरत की हैं हमने "शहर-ए-यार" से
उसको ख़्वाबों में आए हुए भी ज़माने हों गए हैं
जहा से तू...