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#विरह
सावन की अँधेरी रात, रिमझिम बरसात।
झींगुर का संगीत, दूर हो मन का मीत।
मन विचलित होने लगता है,
यादों का चित्र उभरने लगता है।
कभी आह! कभी आहा!
मन कहने लगता है।
क्या कहूँ, किससे कहूँ,
अपने मन की बात।
जल्दी कटती नहीं है,
विरह की रात।
#जुगनू
झींगुर का संगीत, दूर हो मन का मीत।
मन विचलित होने लगता है,
यादों का चित्र उभरने लगता है।
कभी आह! कभी आहा!
मन कहने लगता है।
क्या कहूँ, किससे कहूँ,
अपने मन की बात।
जल्दी कटती नहीं है,
विरह की रात।
#जुगनू
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