...

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लगे - 2


चौंकीदार बने चाटुकार हैं अब,उसकी झूठी ही महिमा गढ़ने लगे,
जैसे जोड़कर दो पंक्तियां कोई ख़ुद को शायर बड़ा समझने लगे,

अपने सिवा कुछ नज़र ना आए,अहंकार सत्ता का जब बढ़ने लगे,
जनता भी हो जाए बेखबर हर मुद्दे से, सिर धर्म की शराब जब चढ़ने लगे,

कोई हक़ ना बचे जम्हूरियत का,सवाल पूछने पे उल्टा गले पड़ने लगे,
तरक्की नहीं दिखावेबाज़ी हैं,मेहनतकशों के हिस्से की रोटी सफेदपोशों को जब बंटने लगे,

रख दो तस्वीर नई सामने, जलने पे धुआं पुरानी से जब उठने लगे,
अब दौर हैं गला दबाने का 'ताज',जैसे ही सच कोई कहने लगे।
© taj