11 views
तेरी चुप्पी
तेरी चुप्पी ज़हर का एक जाम लगती है,
हर साँस हमको तो इल्ज़ाम लगती है।
पिछले जन्मों के कर्मों का फल है शायद
ज़िंदगी पल दो पल की मेहमान लगती है।
अश्क भी तो अब आँखों में आते नहीं,
हर खुशी हमको तो अब हराम लगती है।
इंसान हूँ मैं भी, कोई फरिश्ता तो नहीं,
गमों से चूर हर सुबह-ओ-शाम लगती है।
दिल का है तकाज़ा की कुछ तो कहो तुम,
इस तरह क्यों खामोश ज़ुबान लगती है।
इक तेरे इशारे पर लुटा देंगे हम जान,
तू साथ है तो ज़िंदगी मेहरबान लगती है।
हर साँस हमको तो इल्ज़ाम लगती है।
पिछले जन्मों के कर्मों का फल है शायद
ज़िंदगी पल दो पल की मेहमान लगती है।
अश्क भी तो अब आँखों में आते नहीं,
हर खुशी हमको तो अब हराम लगती है।
इंसान हूँ मैं भी, कोई फरिश्ता तो नहीं,
गमों से चूर हर सुबह-ओ-शाम लगती है।
दिल का है तकाज़ा की कुछ तो कहो तुम,
इस तरह क्यों खामोश ज़ुबान लगती है।
इक तेरे इशारे पर लुटा देंगे हम जान,
तू साथ है तो ज़िंदगी मेहरबान लगती है।
Related Stories
27 Likes
7
Comments
27 Likes
7
Comments