...

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तेरी चुप्पी
तेरी चुप्पी ज़हर का एक जाम लगती है,
हर साँस हमको तो इल्ज़ाम लगती है।

पिछले जन्मों के कर्मों का फल है शायद
ज़िंदगी पल दो पल की मेहमान लगती है।

अश्क भी तो अब आँखों में आते नहीं,
हर खुशी हमको तो अब हराम लगती है।

इंसान हूँ मैं भी, कोई फरिश्ता तो नहीं,
गमों से चूर हर सुबह-ओ-शाम लगती है।

दिल का है तकाज़ा की कुछ तो कहो तुम,
इस तरह क्यों खामोश ज़ुबान लगती है।

इक तेरे इशारे पर लुटा देंगे हम जान,
तू साथ है तो ज़िंदगी मेहरबान लगती है।