...

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खुदा चाहता हैं
मेरी तकदीर में बेबसी खुदा चाहता हैं
मेरे ज़हन से रिहाई भी खुदा चाहता हैं

मेरे लफ़्ज़ मेरी कलम से तड़प चाहते हैं
काफ़िर भी इस शहर में खुदा चाहता हैं

मोहब्बत में जनाजे बहुत निकले यहां
अब हर महबूब ईश्क में खुदा चाहता है

निकले जो दम तो तेरी चौखट पर निकले
मेरा खुद में मामूली हो जाना खुदा चाहता है

तरीके बदल दिये हैं तुझे पाने के यहां
वरना हर दिल बस खुदा चाहता हैं

मेरी ग़ज़ल में लोग कारिगरी चाहते हैं
मेरे लफ़्ज़ों का अधूरापन खुदा चाहता हैं
© nikital__