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अंशमान।

(मन और तारे प्रकृति का अंश है,वह प्रकृति की तुलना में अपूर्ण है)

कैसे टूट-टूट कर शिखरों से मन गिरे
वजूद नहीं ऐसे बीखरो से घन घिरे
अगणित हो अनेक हो,पर न्युनतम एक पर्ण हो
तुम प्रकाश हो पर अपूर्ण हो
बहु संख्य वेग तुम्हारा व्यापक हो
असीम ब्रह्मांड के पार न हो

वह ब्रह्मांड है, अनंत प्रकाश वर्ष हों
तुम अंश, भ्रमित मात्र एक स्पर्श हो

कैसे टूट-टूट कर शिखरों से मन गिरे
जैसे ब्राह्मंड भरण के अभिमान से तारक जन घिरे
है अनेक मन, सब मन एक तन वर्ण हो
तुम शक्ति हों पर अपुर्ण हों
अद्वितीय वेग तुम्हारा अशरीर हो
व्यक्त प्रकृति परिवर्तनीय मैं तुम बंधक हो

व्यक्त प्रकृति‌ शक्तिमान महामती हो।
हे अंश मन, तुम व्यक्ता के अव्यक्त, सीमित अंग हों।

@kamal