...

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क्या हम दुबारा मिलेंगे
पत्थर पे दूब उगेंगे
क्या हम दुबारा मिलेंगे

बिछड़े कभी जिस अदा से
वो पल कैसे भूलेंगे

राहें जो खार भरी थीं
क्या उन पे फूल बिछेंगे

इस भूल में रहे  बैठे
वो हमसे वफा करेंगे

जिनकी चाहत आज़ाबी
वो ही तो ग़ज़ल कहेंगे

इक शब तो हो ऐसी भी
जब दिल की कहें सुनेंगे

हर्फों की मोती पिरो के
नज़्मों के हार बुनेंगे

जो आओ हमसे मिलने
जीवन भर राह तकेंगे

नस्तर चलते हैं दिल पे
क्या यादों से उभरेंगे

हसरत जो हमसे पूछे
हम तुम से गले लगेंगे

सपने होते हैं झूठे
न हम न दुबारा मिलेंगे।।

कल्याणी झा