स्वयं को पहचान ले।
प्रखर तू प्रचण्ड है
तू उत्तर का खंड है,
ब्योम सा विशाल तू
सृष्टि सा अपार है
ये धरा समायी तुझमे
तू बद्री है, केदार है
जमुना की लहर भी तू
गंगा का प्यार है
सृजन का ब्रह्म तू
शिव का तू संहार है
राम की है वेदना
तू लखन सा त्याग है
भरत की निष्ठा तुझ में
मारुति सी आग है
पांडवो का संघर्ष है
तू कृष्ण सी आस है
काल की धुरी पे तू
व्यक्ति ही तो खास है।
दर्पण को तू थाम ले
खुद को इक आयाम दे,
क्या ढूंढता है जग में तू
स्वयं को पहचान ले
दे कल्पना को रंग दे
सपनो को उड़ान दे
क्यों भटक ता पथ से तू
लक्ष्य को...
तू उत्तर का खंड है,
ब्योम सा विशाल तू
सृष्टि सा अपार है
ये धरा समायी तुझमे
तू बद्री है, केदार है
जमुना की लहर भी तू
गंगा का प्यार है
सृजन का ब्रह्म तू
शिव का तू संहार है
राम की है वेदना
तू लखन सा त्याग है
भरत की निष्ठा तुझ में
मारुति सी आग है
पांडवो का संघर्ष है
तू कृष्ण सी आस है
काल की धुरी पे तू
व्यक्ति ही तो खास है।
दर्पण को तू थाम ले
खुद को इक आयाम दे,
क्या ढूंढता है जग में तू
स्वयं को पहचान ले
दे कल्पना को रंग दे
सपनो को उड़ान दे
क्यों भटक ता पथ से तू
लक्ष्य को...