...

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दोस्ती
इबादत मुकम्मल हो जाती है जिस रोज बिना स्वार्थ के दोस्ती हो जाती है,

ना रंग दिखता है ना रूप दिखता है ना जात ना मजहब मुझे तो मेरे यारों में रब की तस्वीर नजर आती है,

इबादत मुकम्मल हो जाती है जिस रोज बिना स्वार्थ के दोस्ती हो जाती है,

दोस्तों की बुरी...