...

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जहान
सोचू उस कल की बातें ,
बीत गए आज जो,
क्यो पढू उस कल को,
कभी न था मेरे साथ जो।

क्या होगें पूरे सपने मेरे भी,
क्या कर पाऊँगी पूरा उन उम्मीदों को भी,
क्या पूरे होंगे वो जंगल कभी,
क्या हूँ मैं अभी।

उस असमान में रंगना चाहूँ,
उसी की हवा में खोना चाहूँ,
उसी के ख्वाब में चाहूँ अभी,
चाहूँ उसी में सुबह-शाम सदा ही।

सुंदर जैसे जन्नत सा ,
रंग मानो विशाल समुद्र सा,
अंनत शिव की शक्ति सा,
प्यारा मां की ममता सा ।

जंगल की भी खूब कहानी ,
जीने का साधन देती वो अनोखी रानी,
जन्नत है धरती की हरियाली,
सुंदर जैसे गोरी,
गुस्से में वो काली,
रंगों से भरी हुई हरियाली प्यारी -प्यारी ।
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