ठोकर......
सारे शौक खत्म हो गए मेरे,,
बचपना भी मेरा मर गया।।।
एक ठोकर लगी ऐसी बिन संभले दिल संभल गया।।।।
पिंजरा खुला था मेरा फिर भी न उड़ सकी,,,,
पंख होने का एहसास खत्म हो गया।।।।।
हर आईने में खुद को निहारा करती थी मैं,,,
अब खुद को देख मुस्कुराना बंद हो गया।।।।।
एक ठोकर लगी...
बचपना भी मेरा मर गया।।।
एक ठोकर लगी ऐसी बिन संभले दिल संभल गया।।।।
पिंजरा खुला था मेरा फिर भी न उड़ सकी,,,,
पंख होने का एहसास खत्म हो गया।।।।।
हर आईने में खुद को निहारा करती थी मैं,,,
अब खुद को देख मुस्कुराना बंद हो गया।।।।।
एक ठोकर लगी...