...

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ठोकर......
सारे शौक खत्म हो गए मेरे,,
बचपना भी मेरा मर गया।।।
एक ठोकर लगी ऐसी बिन संभले दिल संभल गया।।।।
पिंजरा खुला था मेरा फिर भी न उड़ सकी,,,,
पंख होने का एहसास खत्म हो गया।।।।।
हर आईने में खुद को निहारा करती थी मैं,,,
अब खुद को देख मुस्कुराना बंद हो गया।।।।।
एक ठोकर लगी ऐसी रोशन जहां में अंधेरा हो गया।।।।।
खेल कूद में मस्त मैं,हर शक्श मुझे सच्चा लगता था,,,,
ज़िंदगी खेली साथ मेरे, तो मेरा खेल खत्म हो गया,,,,
किसी के साथ जीने के ख़्वाब ऐसे सजाएं मैंने,,,,
मेरे हर सपने का कत्ल सरेआम हो गया।।।।
एक ठोकर लगी ऐसी हर रिश्ते में फेर हो गया।।।।
ख्वाहिशें और उम्मीद सारी खत्म हो गई,,,
मेरा मुझमें ही कुछ मर गया।।।।
एक ठोकर लगी ऐसी मोम होकर भी दिल पत्थर हो गया।।।।।
© vandana singh