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स्तुति मुक्तक

स्तुति - मुक्तक - हे नाथ विनय...

हे नाथ विनय बालक केरी सब मंगल काज सफल कीजै।
उत्फुल्ल रहे हर एक व्यक्ति सचराचर जहाँ सकल कीजै।
नित भोर से सांझ सुहावन हो मन द्रवित नही होने पाये,
उजडे बिछुडे इन पुष्पों को अब सुन्दर नाथ कमल कीजै।

--- अनुज कुमार गौतम 'अश्क'
नोट - यह एक काफी पुराना मुक्तक है, थोड़ा शब्द संयोजन इधर उधर है किन्तु बचपन की रचनाओं को संयोजित रखने के उद्देश्य से तोड़ मरोड़ नही किया गया ।।