...

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हर एक रोज एक नया दोस्त
हम गैरों से एकतरफा रिश्ता निभाते रहे
हर एक रोज एक नया दोस्त बनाते रहे

मैंने नहीं देखे थे पर्दे के पीछे की सच्चाई
रोज पर्दे पर बनावटी किरदार निभाते रहे

धोखे बज दोस्तों से लाख गुना बेहतर ही
हर रोज़ एक ईमानदार दुश्मन बनाते रहे

मेरे दिल के एक कोने में दबें हैं कई राज
उससे दूर होकर हर एक राज छुपाते रहे

एक रोज वो मेरे गजल पर थिरकती रही
हम अपनी ही गजल पर आंसू बहाते रहे

कहानी सुनाने की हिम्मत नहीं किसी में
उस मौन खुदा को सारे किस्से सुनाते रहे..!!


balram barik 💔