मन और मौन.....
जब वार नयन से नजर करे
तब अधर मौन कैसे रह पाये
जब वार मौन के बाण करें
तब निर्झर नयन कैसे सह पाये।
जब मन पीड़ा से कुंठित हो
तब मन मंदिर कैसे बन पाये
जब कुम्हलाई हो बसंत में...
तब अधर मौन कैसे रह पाये
जब वार मौन के बाण करें
तब निर्झर नयन कैसे सह पाये।
जब मन पीड़ा से कुंठित हो
तब मन मंदिर कैसे बन पाये
जब कुम्हलाई हो बसंत में...