...

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उम्मीदें
हर मां को एक उम्मीद रहती है बच्चे से,
होगा मेरा सहारा मेरा बच्चा,
बस यही सोचती है हर एक मां,
पिता सोचते हैं बच्चा होगा बुढ़ापे का सहारा,
ना जाने कितना कष्ट सहन करके,
पिता अपने बच्चे को पैरों पर खड़ा करता है,
माता-पिता की आंखों में एक उम्मीद का दीपक जलता है, मेरी संतान मेरा सहारा होगा बस यही आस रहता है, ना जाने कितनी रातें सोती नहीं है मां, अपनी नींद त्याग कर तब बच्चे को सुलाती है मां, उम्मीदों ही उम्मीदों पर निकल जाती है पूरी जिंदगी, जब आता है अंतिम चरण,
सहारे की उम्मीद मन में रहती है,
कुछ माता-पिता को तो सहारा मिल जाता है,
किंतु कुछ ऐसी संताने हैं जो बुढ़ापे में माता-पिता का पेट भी नहीं पाल सकते हैं,
उम्मीदें टूटती भी हैं,
और उम्मीदें बनी भी रहती हैं।