उधारी
खुद पर एक उधारी है
शब्दों की मारा मारी है
कोई दिल से हल्का तो कोई दिल से भारी है,
खुद की खुद से उधारी है
कोई ढूँढता रब सबमें कोई ढूँढता जग सबमें
ये कैसा खेल जारी है
रिश्तों नातों का हुआ अंत अभी तो नजर ओर बुरी...
शब्दों की मारा मारी है
कोई दिल से हल्का तो कोई दिल से भारी है,
खुद की खुद से उधारी है
कोई ढूँढता रब सबमें कोई ढूँढता जग सबमें
ये कैसा खेल जारी है
रिश्तों नातों का हुआ अंत अभी तो नजर ओर बुरी...