" आज महिला दिवस है "
आज दिन है उसका... जिससे हर घर की सुबह होती हैं,.
सूरज नही वो... मगर सूरज सी चमक बनाये रखती हैं,
सुबह खिलने से लेकर.. रात छिपने तक..
वो प्रहरा सा देती रहती है, आराम नही उसे पल भी....
है एक...आज दिन है उसका... जिससे हर घर की सुबह होती हैं,.
चाँद सी सूरत उसकी...ना कोई चाँद बनकर वो रहती है,
घर बाहर सब सम्भलना उस को... वो देवी सी बनकर रहती है,
पूजता ना कोई उसको... बस वो सबको सहती है,
है एक...आज दिन है उसका... जिससे हर घर की सुबह होती हैं,.
वो अबला सी ज्योति है...बाती सी वो जलती रहती हैं,.
ना आजाद है ना...