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अधिकार
कब बनूँगी सहगामिनी तुम्हारी,
अनुगामिनी बनना स्वीकार नहीं
कब तक कौमार्य को परखोगे,
ये तेरा जन्मसिद्ध अधिकार नहीं
देवी बनाकर स्थापित मत करो,
कुलांचें भरती हिरनी ही रहने दो
बंधन गहनों का नहीं चाहिए मुझे,
बस उन्मुक्त गगन में उड़ने दो
समझी जाती ससुराल में पराई,
और मायके में भी रहती मेहमान
निभाते हुए कर्तव्यों को भी,
अपने ही अधिकारों से रहती अंजान
सहने के लिए वर्जनाओं को,
हूँ संस्कार की बेड़ियों में गिरफ्तार
अब नहीं और नहीं मैं,
कर पाऊँगी सहन सारे तुम्हारे अत्याचार
Usha patel
अनुगामिनी बनना स्वीकार नहीं
कब तक कौमार्य को परखोगे,
ये तेरा जन्मसिद्ध अधिकार नहीं
देवी बनाकर स्थापित मत करो,
कुलांचें भरती हिरनी ही रहने दो
बंधन गहनों का नहीं चाहिए मुझे,
बस उन्मुक्त गगन में उड़ने दो
समझी जाती ससुराल में पराई,
और मायके में भी रहती मेहमान
निभाते हुए कर्तव्यों को भी,
अपने ही अधिकारों से रहती अंजान
सहने के लिए वर्जनाओं को,
हूँ संस्कार की बेड़ियों में गिरफ्तार
अब नहीं और नहीं मैं,
कर पाऊँगी सहन सारे तुम्हारे अत्याचार
Usha patel
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