...

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अकेला चल
अपने कर्म पथ तू मुसाफिर अकेला ही चल,
राहों में आने वाले मुश्किलों से तू कभी मत डर।

हर अंधविश्वासों, कुरीतियों की बेड़ियों को तोड़कर
भय पैदा करनेवाले लोगों का साथ हमेशा के लिए छोड़ कर।
निडर हो तुम्हें निरंतर बस चलते चलना है ,
हर एक कांटों को फूलों में तुम्हें बदलना है।

अपने बुलंद हौसलों से तुम्हें अंधेरों में प्रकाश भरना है,
अपने अंतर्मन में उठती पीड़ा को तुम्हें खुद ही हरना है।

पंक में रहकर जैसे कमल खिलता है वैसे ही तुझे भी खिलना है ,
मंजिल की चाह मे अपनी राह तलाशती नदी की भांति ही
तुझे भी अपनी राह खुद तलाश अपने मंजिल से जा मिलना है।

अपनी काबिलियत , अपने हुनर को पहचान कर ,
अपने अंदर की छिपी हुई प्रतिभा को निखारकर
अपने हरेक सपनें को अब तुम्हें हकीकत में अकेले ही बदलना है,
अपने आत्मविश्वास का दामन थाम तुम्हें निरंतर बस चलते चलना है।

क्या होगा परिणाम इसका, ये सोचकर अपने कदम पीछे नहीं करना है,
तपती धूप मिले या फिर सुनहरी छांव, नहीं कभी कहीं भी तुम्हें रूकना है।

अपने कर्म पथ तू मुसाफिर अकेला ही चल,
राहों में आने वाले मुश्किलों से तू कभी मत डर।

— Arti Kumari Athghara (Moon) ✍✍
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