ग़ज़ल
अंदेशा बिछड़ जाने का होता भी बहुत है
ऐ जान मगर तुझपे भरोसा भी बहुत है
शोलों को बुझा सकती है शबनम की नज़ाकत
मिल जाए अगर वक़्त पे क़तरा भी बहुत है
हंसते हुए चेहरे पे लिखा था ये भी उसके...
ऐ जान मगर तुझपे भरोसा भी बहुत है
शोलों को बुझा सकती है शबनम की नज़ाकत
मिल जाए अगर वक़्त पे क़तरा भी बहुत है
हंसते हुए चेहरे पे लिखा था ये भी उसके...