...

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"आखिर महंगाई भी क्या दिन दिखातीं है "
आखिर महंगाई भी क्या दिन दिखातीं है,
अब 4 नही 2 रोटी में भूख मिट जाती है,
अब त्योहार तो आते हैं पर,
त्योहारो में भी कहा नयी कमीज आती है!!

खिसते पांवों से चप्पल भी घिस जाती है,
पर एक टांके से फिर मरम्मत हो जाती है,
कभी साईकिल से सारा शहर घूम लेते थे,
अब पैरों को ही हर रास्ता बताती है!!

कभी एक चादर में एक भी नहीं समाते थे,
अब एक में कई जिंदगियां समिट जाती है,
आखिर महंगाई भी क्या दिन दिखातीं है,
अब 4 नही 2 रोटी में भूख मिट जाती है!!
© Rohit Kumar Gond
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