।। जीवन दर्पण ।।
मै एक कविता लिखुंगी,
अपने संघर्ष की कविता
जीवन पथ पर उस पहले क़दम की कविता
जब अपनी नन्ही-नन्ही उंगलियों के बीच
माँ के विश्वास को थाम रखी थी
और साथ ही थाम रखी थी
अपने डगमगाते क़दमों की मर्यादा
ताकी उनका विश्वास मुझसे छूट ना जाये ।
मै एक कविता लिखुंगी
अपने पहले शब्द की कविता
जिसे भावनाओं की चारदीवारी लाँघकर
मै यूँ ही अंजाने में कह गई थी
मेरे शब्द फुटे लरजे बिखरे
फिर एक दिन मुझे समझदारी सीखा गये
और सीखा गये अपनी हुनर
जो नज़र तो आती है मगर खामोश है ।
मै एक कविता लिखुंगी
अपने चरित्र की कविता
जो कोमल शुभ्र कमल की भाँति
मेरे स्वाभिमान को निखारती है
और साथ ही निखारती है मेरे जीवन को
दुनियाँ...
अपने संघर्ष की कविता
जीवन पथ पर उस पहले क़दम की कविता
जब अपनी नन्ही-नन्ही उंगलियों के बीच
माँ के विश्वास को थाम रखी थी
और साथ ही थाम रखी थी
अपने डगमगाते क़दमों की मर्यादा
ताकी उनका विश्वास मुझसे छूट ना जाये ।
मै एक कविता लिखुंगी
अपने पहले शब्द की कविता
जिसे भावनाओं की चारदीवारी लाँघकर
मै यूँ ही अंजाने में कह गई थी
मेरे शब्द फुटे लरजे बिखरे
फिर एक दिन मुझे समझदारी सीखा गये
और सीखा गये अपनी हुनर
जो नज़र तो आती है मगर खामोश है ।
मै एक कविता लिखुंगी
अपने चरित्र की कविता
जो कोमल शुभ्र कमल की भाँति
मेरे स्वाभिमान को निखारती है
और साथ ही निखारती है मेरे जीवन को
दुनियाँ...