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अनाथ परिवार

एक कहानी मैं अधूरी लिख रहा हूं
एक मां बेटे की मजबूरी लिख रहा हूं।
बेटा जिसपर परिवार की जिमेदारियां हैं।
मां जिसके सामने सिर्फ मजबूरियां हैं ।
मैं आज उसकी दर्द भरी व्यथा लाया हूं।
मैं उस मजबूर परिवार की कथा लाया हूं।
बड़ा बेटा जिसने शहर में नौकरी पाई है और
उसके परिवार में थोड़ी सी खुशियां आई हैं।
आज वो कमाकर लौटा है और मां से कह रहा है,
कि सुन मां तेरे जीवन में थोड़ी सी खुशिया लाया हूं।
हां मा मैं हमारे लिए दो रोटी की नौकरी पाया हूं।
ज्यादा नही मां कुछ ही पैसे कमाया हूं॥
पाई पाई जोड़कर मैं कुछ पैसे जुटाया हूं।
सुन मां मैं अपने छोटे के लिए किताबे
और छोटी के लिए गुड़िया लाया हूं!
सारे खर्च के बाद कुछ पैसे बचे थे तो,
मां मैं तेरे लिए एक स्वेत रेशमी साड़ी लाया हूं।
पर माफ करना मां मेरी मैं इतने ही पैसे कमाया हूं।
धिक्कार है मां मुझे राखी का फर्ज भी नही निभाया हूं।
अपनी इकलौती बहना को पढ़ा भी नही पाया हूं।
बारहवी पढकर मैं तो चपरासी की नौकरी पाया हूं॥
शायद इसीलिए मां मेरी मैं इतना ही कमा पाया हूं।
जब पापा रहते थे तो हर ख्वाहिश पूरी हो जाती थी।
मालूम न चलता था मुस्कान कैसे चेहरे पर आ जाती थी।
आज खो गई है मुस्कान कही वो चेहरे की
जो कल तक पापा के आ जाने से ही आ जाती थी।
आज कमाया हूं जब पैसे तो पैसो की कीमत पता चली ।
कल तक तो खूब उड़ता था कोला पेप्सी खूब चली।
पापा के साए में तो हर ख्वाहिश पूरी होती गई तभी,
नाराज हुआ हूं खुदा से जिसने मेरी खुशी तबाह करी।
पापा को छीना हमसे और मां सुनी तेरी मांग करी।


© ranvee_singh