...

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खंडहर


मैं शायद भाग रही थी,
ख़ुद से
अपने अकेले पन से
उनके चले जाने से
बदले रूख से
मैं उन तमाम भावनाओं, बेचैनियों से भाग रही थी....
कोई ऐसी जगह ढूंढ रही थी ,
जहां उनका कोई ज़िक्र ना हो,
अहसास ना हो,
मौजूदगी ना ,
शायद मैं डर रही थी कि
वो मुझपे हावी ना हो जाएं
कहीं मैं उनके खयालों में
ख़ुद को भूल ना जाऊं
मुझे लगातार ये लग रहा था कि
उसकी मौजूदगी मेरे जेहन में
घर कर गई तो मैं ख़ुद को
कैसे निकालूंगी इस बेवजह की
उलझन से !

पर इन फालतू कोशिशों के बाद भी
मेरे हाथ कुछ नहीं लगा।
सब अधुरा रह गया।
बिलकुल ख़ाली कमरा ठीक उसी तरह
जैसे कोई घर , मकान बनता है और फ़िर
खंडहर !


🍂🥀
© kajal