जिद्दी मन
ना मंजिल नज़र आती है न कहीं किनारा
हर कोई आगे बढ़ रहा है,लेकर एक दूसरे का सहारा
हर कोई दौड़ में है ,दिमाग में भरी उलझने हैं
लगे जैसे हर कोई किसी न किसी होड़ में है ।
आगे बढ़ना चाहते हैं या निकलना चाहते हैं
समझ नहीं आता , सफल होना चाहते हैं ,
या किसी को हराकर दिखाना चाहते हैं।
यह सब मन के खेल मन की अदाएं हैं।
कभी...