...

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हिम.....
#विश्व_कविता_दिल

निकली है घर से दूर वो,
दिल चाह अब न घर आंऊ।
यहीं कहीं कुटी बना कर,
हमेशा के लिए ठहर जांऊ।
इतनी अच्छी हवा कुलार
और पंखे में कंहा,
मिलती जो शान्ती यंहा,
वो चार दिवारो के अन्दर कंहा।
मन को कितना शीतल करती,
कल -कल कर नदीयां है बहती।
बर्फ से पर्वत ढकी चांदी से,
पिघल -पिघल बन झरना गिरती।
अभी धूप ही, अभी छांव है,
ये हिमालय खुशीयों का गांव है।
गुजर गए ये 7 दिल कैसे ,
लग रहा अभी आया हूं जैसे।

© Savitri..

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