...

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आजादी
ये आज़ादी नहीं मिली है खेरात में,
जाने बहुत गवाई हैं लाखों की तादाद में,
चली थी बहुत गोलियां जब जलिया वाला बाग में,
बुढ़े,बच्चें और माँ-बहने,
सब जले थे उस क्रूरता की आग में,
रुह कांप जाती है मेरी,
जब कहानी आती हैं वो याद में,
ये आज़ादी नहीं मिली है खेरात में,
जाने बहुत गवाई हैं लाखों की तादाद में,

याद करो,
उस वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई को,
जो सवार थी घोड़े पर,
लेकर चम-चमाती तलवार हाथ में,
हाहाकार मचा दिया था अंग्रेज़ी सेना में,
माँ भवानी की हुंकार में,
नत से नाबुत कर दिया था अंग्रेजो को,
एक स्त्री ने आज़ादी की आग में
ये आज़ादी नहीं मिली है...