...

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आजादी
ये आज़ादी नहीं मिली है खेरात में,
जाने बहुत गवाई हैं लाखों की तादाद में,
चली थी बहुत गोलियां जब जलिया वाला बाग में,
बुढ़े,बच्चें और माँ-बहने,
सब जले थे उस क्रूरता की आग में,
रुह कांप जाती है मेरी,
जब कहानी आती हैं वो याद में,
ये आज़ादी नहीं मिली है खेरात में,
जाने बहुत गवाई हैं लाखों की तादाद में,

याद करो,
उस वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई को,
जो सवार थी घोड़े पर,
लेकर चम-चमाती तलवार हाथ में,
हाहाकार मचा दिया था अंग्रेज़ी सेना में,
माँ भवानी की हुंकार में,
नत से नाबुत कर दिया था अंग्रेजो को,
एक स्त्री ने आज़ादी की आग में
ये आज़ादी नहीं मिली है खेरात में,
जाने बहुत गवाई है लाखों की तादाद में।

याद करो उन युवाओं को,
जो चुम गये फ़ांसी आज़ादी के प्यार में,
आग दौडा़ दी थी देश-प्रेमियों के रगों में तीन दोस्तों ने,
भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव ने,
अपनी जान देकर एक ही बार में।
ये आज़ादी नहीं मिली है खेरात में,
जाने बहुत गवाई हैं लाखों की तादाद में।

याद करो,
उन बाबा साहेब को
जो खडे़ थे सीनातान,
भेदभाव की हर बात के सामने,
संविधान लिख दिया उस महान आत्मा ने,
जिसे छोटी जाति का समझा जाता था,
उस वक्त देश के जन आम में,
ये आज़ादी नहीं मिली है खेरात में,
जाने बहुत गवाई हैं लाखों की तादाद में।

याद करो,
उन वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप को,
छोड़कर राजसी भोजन,
खायी थी घास की रोटी आज़ादी की चाह में,
दो टुकड़े कर दिये दिये थे
उस मुग़ल सेनिक बदायुनी के,
बब्बर शेर के जेसे, तलवार के एक ही वार में,
ये आज़ादी नहीं मिली है खेरात में,
जाने बहुत गवाई हैं लाखों की तादाद में।

-:(Piyush Gayri)
© Alfaaz-e-Piyush