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वो जो कहता है कि इक दिन हाँ मुहब्बत होगी
वो जो कहता है कि इक दिन हाँ मुहब्बत होगी
संग दिल को भी तो महबूब की उल्फ़त होगी

फूल भेजा है जो ख़त में ये करम कैसा है
हाँ मिरे यार की अच्छी सी ही हालत होगी

मैं तो सोया हूँ घनी इश्क़ की चादर ओढ़े
तब उठूँगा जो तिरे दिल से इजाज़त होगी

ज़िंदगी का ये सफ़र है न अकेले आसाँ
जो तू राज़ी हो तिरी मुझ पे इनायत होगी

तू जो नफ़रत का न जाना है सलीक़ा अब तक
ये तिरे क़ल्ब में ही इश्क़ की चाहत होगी

हूँ जो मुजरिम तो सज़ा दे ले है हाज़िर 'ज़ैग़म'
ये शहर भी तेरा तेरी ही अदालत होगी
© words_of_zaiغम