...

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फौजी बाप ते लाढला बेटा
अरमान बड़े अरु नेक इरादे,
जहां हारे बजीर ते जीते प्यादे।
ऐसे कर्मठ मेरे पापा,
मातृभूमि के हैं शहजादे।

खाकी वर्दी तन पे जब साजे,
दूर से देखकर दुश्मन भागे।
आन बान और शान पे मिटने वाले,
वो मेरे पापा और मैं उनका बेटा लागे।

देकर लालच मुझे बुलाते
नए नए वो तोहफ़े लाते।
मेरी अभिलाषा झट बतलाते,
बाद में खुद वो पहले मुझे खिलाते।

बीत गईं जब उनकी छुट्टियां,
देकर मुझको बहुत झप्पियां,
खयाल रखना तुम मां का अपनी,
आने न पाएं उनकी खुशी में में कमियां।

मुझको अब मेरा फर्ज़ बुला रहा है,
तुमसे दूर जाने का गम रुला रहा है।
फिकर न करना तुम वहां भी मेरा घर है,
दुआ हैं बहुत साथ मेरे फिर मुझे किस बात का डर है।