...

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दहलीज
औरत और दहलीज की भी एक अलग कहानी है।
मायके और ससुराल के बीच की रेख की
निशानी है...........
औरत की मर्यादा की एक निशानी है
औरत और दहलीज की भी एक अलग कहानी है.....
इसको सब पता है कौन कब कहां है
की औरत के बंदिशों की निशानी है...
वह इसको लागे इतनी हिम्मत कहा
औरत और दहलीज की चौखट पर बैठी देती सपनों की कुर्बानी है........
औरत और दहलीज की भी एक अलग कहानी है।