...

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साथ रहना दोनों का:-
कितना जरूरी था ना रहना साथ दोनो का।।
जिस साथ की कोई नही काट,नहीं कोई विकल्प।
सांसों सा अनिवार्य।
साथ रह कर संजोने थे। सपने,बुनना था उनको करीने से।
एक एक फंदा सपनों का एक दूसरे के साथ,एक दूसरे के लिए।
कर सकते थे साथ में दोनों कुछ बहुत बड़ा, EMPIRE सा।
पकड़ के एक दूसरे का हाथ, उन हाथों की गर्माहट से फिर आ जाती थकते कदमों में जान।
देने हिम्मत एक दूसरे को।
भर देते कमियों को एक दूजे की PROOF READING के साथ।
पहचान अलग अलग होकर भी होती एक...दोनों की।
जिंदगी के रंगमंच पे।
मृत्यु के शाश्वत सत्य के मिलने आने पे भी होते साथ दोनों।
लेकिन हाय री ! नियति ये क्या हुआ, निमिष भर में।
दूर जो थे ही कुछ जुड़ना बाकी रह गया था।
हो गए दूर सदा के लिए।
मिलना होगा कहां?
उस पार कि इसी पार उम्मीद के साथ।।

समीक्षा द्विवेदी


© शब्दार्थ📝