...

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लज्जा
बैठा अकेला सोचा एक दिन,
क्यों मैं ये न कर पाऊंगा,
कलियुग सही पर भाव हैं सच्चे,
प्रभु के दर्शन अवश्य पाऊंगा।
मैं ठहरा कायस्थ कुल का,
श्री चित्रगुप्त का ध्यान किया,
सच्चे भाव से मन ही मन,
साष्टांग उनको प्रणाम किया।
बैठ गया मुद्रा में कर जोड़े,
चक्षुओं को बंद कर किया ध्यान,
एक पल को लगा ऐसा जैसे,
रुक गयी हो ये सृष्टि तमाम।
प्रसन्न हूँ तेरे भाव से वत्स,
क्या चाहिए अब बोल,
बस मन में ही जवाब दे देना,
आँख और मुँह तू मत खोल।
ऐसी वाणी सुनकर मन में बोला,
कुलदेव चित्रगुप्त जी को नमस्कार है,
आपसे बात हो रही मुझ तुच्छ की,
ये तो साक्षात चमत्कार है।
विनती इतनी प्रभु गर प्रसन्न हों तो,
बात करनी...