...

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चिंगारी
सो रही थी कलम कब से,मन्द पड़ने लगी इसकी धार थी
जब बुझने लगी चिंगारी,फिर मैंने लफ्ज़ को आग बनाया
कुछ अजीब सी इसकी रवायतें है,गज़ब से इसके असूल
जो न पा सका जमाना तो इसने हर शह में दाग बताया
कितनी कसौटियों पे परखा इनको सदियों से जमाने ने
आग से जब निकली सीता फिर ही उसको बेदाग बताया
यहां हैसियत देख के तय किये जाते है इज्जत के पैमाने
छोटा दिखा सूरज दूर से तो उसको भी चिराग बताया