छाया
#छाया की कहानी
रात का पहरा जैसे जैसे बढ़ रहा था,
मन अकेलेपन से था बौखलाया|
देख के सुने आँगन को आँखे भर आयी,
आँगन में पोते का खेलना याद आया |
आज सुबह ही तो गए बहु -बेटा शहर,
े घर में रह गयी केवल मेरी वृद्ध काया |
पत्नी ने साथ छोड़ दिया वक़्त से पहले ही,
सोच पुरानी स्मृतियों को मन भर आया |
रोते रोते जाने कब आँख लग गयी,
एक छाया को अपने सिरहाने पाया |
मैंने पूछा तुम हो कौन यहाँ क्यों आए े,
बोला तुमसे मिलने...
रात का पहरा जैसे जैसे बढ़ रहा था,
मन अकेलेपन से था बौखलाया|
देख के सुने आँगन को आँखे भर आयी,
आँगन में पोते का खेलना याद आया |
आज सुबह ही तो गए बहु -बेटा शहर,
े घर में रह गयी केवल मेरी वृद्ध काया |
पत्नी ने साथ छोड़ दिया वक़्त से पहले ही,
सोच पुरानी स्मृतियों को मन भर आया |
रोते रोते जाने कब आँख लग गयी,
एक छाया को अपने सिरहाने पाया |
मैंने पूछा तुम हो कौन यहाँ क्यों आए े,
बोला तुमसे मिलने...