...

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तारीफ़
मेरे किसी चाहने वाले ने कुछ लफ्ज़,
प्यार के मुझ से कहें;
कि बेहया, बेगेरत, बदजुबाँ तु,
तेरी सूरत कालीं, सीरत उससे भी मैली,
जिस घर जायेगी, उस घर को तोड़ देगी,
बसे बसाये घर को उजाड़ देगी।
खिलें हुए चेहरों की मुस्कुराहट छीन लेगी,
और जो बाग में खिलें हैं फूल उनके,
उन्हें अपनी कालीं परछाईं से मार देगी
तेरी हसरत ऐसी जो घर की बर्बादी कर दे,
अच्छे भले महकते घर को, तु रास्ते पर ला दे,
सुकून उस घर का तु ख़त्म कर देगी,
जिससे होगा निकाह तेरा,
तु उसे जीते जी मार देगी।
हर दिन शिकायतों का पैग़ाम आयेगा तेरे यहाँ से,
किन-किन का उत्तर दु,
ख़ामोशियाँ लिख कर भेज दूंगा, और
कुछ पन्ने माफीनामे के,
तुझ जैसी आफत को जन्नत जो भेजा,
जहन्नुम बनाने को।
कितना कोसू तुझे,
तु क्यों नहीं बदलतीं,
ये इंसान की शक्ल रख,
दिल हैवान का क्यों रखतीं,
शर्मशार हु मैं तुझ पर,
तुझे इस बात से जरा भी फर्क़ नहीं पड़ता,
अल्लाह रियाही दे ऐसे रिश्तों से,
जिनके दिल में शर्म और लिहाज नहीं पलता।
© shivika chaudhary