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नहीं हैं 3
चाहा हैं हर सुख मैंने भी लेना,पर
इतनी तो अपनी कमाई नहीं हैं,
दिल में हमेशा जलती हैं रहती,पर
आग घर में किसी के लगाई नहीं हैं,
सालों से देखा नहीं हैं मुझे और
कहते हो नाराज़गी जताई नहीं हैं,
हर बात पे बस मुझे कोसते हो और
कहना आती हमें रुसवाई नहीं हैं,
मांगी नहीं हैं अगर ख़ैर तुम्हारी तो
तुमने भी वफ़ा निभाई नहीं हैं,
खड़े रह गया जो मैं मोड़ पर,तो तुमने
मुड़कर देखने की ज़हमत उठाई नहीं हैं,
इश्क़ तो हैं बस एक दर्द, कहीं
मिलती जो इसकी दवाई नहीं हैं,
पूछी नहीं हैं अगर सलामती तुम्हारी,तो
अपनी भी खैरियत भिजवाई नहीं हैं,
दो शेयर सुनकर ही हो गए आग बबूला
अभी पूरी ग़ज़ल तो सुनाई नहीं हैं,
मोहब्बत में आज़ादी मिल भी जाए पर
'ताज' नफ़रत में कोई रिहाई नहीं हैं।
© taj
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