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एक खयाल
राज़ फिर भी पहोंच गए गैरो तक कैसे,
दोस्त तो हमारे सारे ही मुखलिस थे,

जो बनके फिरते थे नूरानी रूह कभी,
इंसानी शक्ल में सारे ही इब्लिस थे,
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