...

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"जिंदगी"
जब जीना ही हैं .....
तो तकलीफ में ही क्यो जिये।
जो दर्द हमारे हिस्से के नहीं..
उन्हे हम क्यो पिये ।

आज लिख रही हूँ जो भी..
बस ये तो मेरी तमन्ना हैं।
यूँ तो रोज़ हज़ारो मिलते हैं,
जो कहते हैं.....
कि यारो एक न एक दिन ..
तो मरना हैं।